अलाव
अलाव
इस साल नुक्कड़-चौराहों पर, अलाव जल न पाया।
फुटपाथ पर सोते को कोई दानवीर कंबल उढ़ाया।।
शीत-लहरी का कहर, गठरी बन दीन को रुलाया।
लकड़ी कहाँ आज- मिट्टी तेल भी नजर न आया।।
अलाव का आनन्द, अब कैसे कर उठाए।
घर-घर से धुआँ ही धुआँ उठ, दम घुटाए।।
सर्दी प्रचण्ड अबकी, ४°सेल्सियस से लुढ़क जाए।
प्यार ऐसे में और है बड़ता, बात युग्मों की बताएं।।
ब्लोअर को चिपका कर, बदन झुलस सा जाए।
कवाब दारू से मवाली, आतंक चहुओर मचाए।।
बर्फिली चट्टानों पर, देश का प्रहरी जम मर जाए।
थर्मोस्टेट शांत, कहाँ से पावर सीमा पर पहुंचाएं।।
ठंड के अलग मजे हैं- कह कवि आस कैसे? जगाए।
सर्दियों में गरीब कहता, जैसे - तैसे रात बीत जाए।।