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अकुला रहे हैं

अकुला रहे हैं

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गीत

अकुला रहे हैं

*****

कोकिले लब खोलकर कुछ तो कहो तुम,

कर्ण सुनने को मेरे अकुला रहे हैं।

*****

तेरी खामोशी नहीं है ये अकारण ।

जानकर कर पाउँगा कोई निवारण।।

मेरी उलझन बढ़ती जाती है प्रतिपल,

तेरे ये तेवर मुझे उलझा रहे हैं ।

कोकिले लब खोलकर कुछतो कहो तुम,

कर्ण सुनने को मेरे अकुला रहे हैं।।

*****

मुंह अगर खोला नहीं ,मर जाऊँगा मैं।

जान लो खुदको बहुत तड़पाऊँगा मैं।।

ये अबोले पल कहर ढाते हैं मुझ पर,

धड़कनें मेरी बढ़ाते जा रहे हैं।

कोकिले लब खोलकर कुछतो कहो तुम,

कर्ण सुनने को मेरे अकुला रहे हैं।।

  *****

तुम मुझे कोसों, दो उलाहना कोई भी।

चस्पा कर दो एब, मनमाना कोई भी।।

मौन सहने की नहीं ताकत है मुझमें,

नयन अंगारे तेरे बरसा रहे हैं।

कोकिले लब खोलकर कुछ तो कहो तुम,

कर्ण सुनने को मेरे अकुला रहे हैं।।

*******

अख्तर अली शाह" अनंत "नीमच


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