STORYMIRROR

वैधविक (विशाल भारद्वाज)

Abstract

3  

वैधविक (विशाल भारद्वाज)

Abstract

अखंड भारत

अखंड भारत

1 min
138

उस भारत माता की मिट्टी के कण कण में समा जाऊं

गर मौका मिले मर मिटने का बिना सोचे ही मै मिट जाऊं।


ये धरती है कई वीरों की , जिस धरती पर मुझे जन्म मिला,

है कर्म फल कई वीरों का , अखंड भारत में जो जन्म मिला।


गर हो जाता अखंड भारत एक , ना गौरी, बाबर आ पाते,

ना गौरी, बाबर सुना होता, ना ही भारत के बिखंड हो पाते।


गर पृथ्वीराज ने युद्ध नियमो का पालन ना किया होता,

तो गौरी ने पहली बार में ही मृत्यु को प्राप्त किया होता।


गर भारत के राजाओं की आपसी नोक झोक ना हुई होती,

तो अकबर का नाम भी गुमनामी में दबा होता।


राणा सांगा, वीर शिवाजी और पेशवाओं का बोल बाला था

कुछ हिस्सों को जीत कर ही सम्पूर्ण भारत मुगलों ने हारा था।


जो सदियों से चला आया था, भाई भाई का नहीं हो पाया था

रावण भी तभी हारा था , भारत भी तभी हारा था।।


एक महाराणा प्रताप भी थे, जो चेतक उनके साथ में था

जो त्याग और संघर्ष के पुजारी थी अकबर भी उनसे सहमा था। 


कुछ भारत के प्रधान थे , जो अंग्रेजो के गुलाम थे 

रच दिया उनने अपना इतिहास और शुरू किया परिवारवाद।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract