STORYMIRROR

Saurabh Chauhan

Abstract

4  

Saurabh Chauhan

Abstract

अकेली रात

अकेली रात

1 min
190

बारिश का मौसम 

चहकती चिड़ियाएँ, नाचते मोर 

चारों ओर, आनंद अति घनघोर 

वहीं किसी एक बूढ़े से पेड़ से 

टूट कर गिरती, एक सूखी शाख़ 


पतझड़ का सन्नाटा 

मायूस दिन, गूंजती रात 

बिलखती माएं और बच्चे अनाथ 

वहीं बेमौसम, धरती का सीना चीरती 

एक नन्ही कली, करती है जीवन का आगाज 


फूल खिलते हैं बाग़ में 

खिलकर मुरझा जाने के लिए 

रात अकेली ही निकल पड़ी है 

मुझे रौशनी दिखाने के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract