अकेलापन
अकेलापन
नोचता हैं खसोटता हैं ये अकेलापन
साये की तरह पीछे लगा रहता है
दिन के उजाले में उदासी सा और,
रात के अँधेरे में खौफ की तरह।
दिन ढलता है रात आती है ये,
अकेलापन मुझे बहुत रुलाता है
रात का सन्नाटा है,
सब सोए हैं अपने अपने घरों में।
मैं फिर निकल पड़ी,
इस अकेलेपन के सफर में
साथ है कुछ कड़वी यादें, कुछ कटु अनुभव,
नोचता हैं खसोटता हैं ये अकेलापन।
अब घुटता हैं दम मेरा,
बोझिल है मेरी आँखें,
पाँव लड़खड़ा गए हैं,
टूट रही हैं साँसें।
दिल में यही सवाल है...
आखिर कब खत्म होगा
ये अकेलापन का सफर
नोचता है खसोटता है ये अकेलापन....।।