7 साल की बच्ची
7 साल की बच्ची
7 साल की बच्ची थी मैं...
खेलने कूदने की उम्र थी मेरी,
छोटी सी एक बच्ची थी,
तो क्या दिख गया था मुझ में तुमको
जो हवस तुम्हारी जाग गई थी,
मुझे देख के ना जाने तुम्हें
कौन सी आग लग गई थी...
तुम्हारे ही तो साथ खेला करती थी,
तुम्हारे हवस को प्यार दुलार
समझ बैठी थी...
धीरे-धीरे मेरी जाँघों और वक्ष -स्थल पर
जो तुम हाथ घुमाते थे,
बच्ची थी मैं ये बात
समझ में ना आती थी...
ठीक से मैं तो
बड़ी भी ना हुई थी बच्ची थी मैं....
7 साल की तुम क्यों नहीं समझ पाते थे...
आँगन में मैं खेल रही थी
जब तुम चुपके से आए ,
कसकर मेरा मुँह दबाया
और खेतों प
र ले आए...
डरा डरा के उस रोज जो
तुमने सारे कपड़े मेरे उतार दिए,
कभी हाथ मेरे सीने पर तो
कभी और कहीं लगा दिए...
चिल्ला ना सकूँ मैं
तो कपड़े मेरे मुंह में घुसा दिए,
चीख-चीख के उस दिन
गला मेरा सुख चुका था....
शायद उस दिन मेरा भगवान भी
मुझसे रूठ गया था...
चीख रही थी मैं साँसें मेरी अटकी थी,
खेत में लहूलुहान पड़ी मैं
7 साल की बच्ची थी,
सच कहती हूँ...
उस दिन तुमने मेरा नहीं
अपनी नीयत का
बलात्कार किया था...
भूल गए थे अंकल तुम की
खुद भी एक बेटी के पिता हो..
क्या दिख गया था मुझमे,
बच्ची थी मैं 7 साल की...।।