मेरी पहचान
मेरी पहचान
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औरत हूँ मैं
हँ एक औरत हूँ
किसी की जागीर नहीं हूँ मैं।
इक दोस्त हूँ, इक बेटी हूँ
इक बहू हूँ, इक पत्नी हूँ,
इक बहन हूँ, इक माँ हूँ
किसी की जागीर नहीं।
जो समझते हैं मुझे कमजोर
उसे पता नहीं,
कि इक तूफान हूँ मैं।
दिल रखने के लिए
सबकी बातें सुनती हूँ,
पर जब बात खुद के दिल पे आये
तो दिल तोड़ना जानती हूँ।
औरत हूँ मैं
किसी की जागीर नहीं
अपने घर की लक्ष्मी हूँ,
जब क्रोधित हो जाऊँ तो काली हूँ।
सरस्वती हूँ, पार्वती हूँ,
कोइ माल नहीं हूँ मैं...
हाँ एक औरत हूँ मैं..।
मेरा खुद का एक वजूद है,
हाँ, ये औरत शब्द ही मेरा वजूद है..
औरत हूँ मैं किसी की जागीर नहीं।।