STORYMIRROR

Jyoti Dhankhar

Abstract Classics

4  

Jyoti Dhankhar

Abstract Classics

अकेलापन निगलेगा

अकेलापन निगलेगा

1 min
301

रवैए ना बदल अभी मंजिल दूर है

अकेलापन निगलेगा हमको राहों में


मुझको तेरी तुझको मेरी जरूरत है

कैद करके बैठे हैं यूं उन लम्हों को


जैसे सांसों को हवा की तवक्को है

मंजिल पाने को मुक्तसर एक तेरा साथ चाहिए


मेरे हाथों को तेरे हाथों की तपिश चाहिए

वो चार कदम की राह तय करने को परवाज़ भरने को


मेरे हमनवां ज्योत को बस इक तेरा साथ चाहिए

इक तेरा साथ चाहिए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract