अजीब सा रिश्ता
अजीब सा रिश्ता
इश्क का इजहार जबां ने तो कभी न किया,
पर तुम्हें खोने का डर दिल को हमेशा लगा रहा।
आने से तुम्हारे मेरी रौनकें बढ़ जाती थी,
तुम अगर न हो तो मेरी महफ़िल ख़ामोश ही रह जाती थी ।
तुम जो न हो आज तो खुद से हूं मैं अब पूछता
''किस कड़ी से हम जुड़े थे क्या था दोनों के दरमियान,
कोई अनकहा सा रिश्ता या फिर इश्क जो अधूरा ही रह गया।''

