ऐसा तो होता रहता है
ऐसा तो होता रहता है
ऐसा तो होता रहता है
कभी खुद को हल्का महसूस कर
सोचती हूं एक ऊंची उड़ान भरूं।
कभी दिल इतना उदास और दिमाग भारी
लगता है दो कदम भी चलना नामुमकिन
कभी बहुत हँसती, बोलती, खिलखिलाती हूं।
और कभी बोलते बोलते खामोश हो जाती हूं
कभी लिखती हूं और लिखते लिखते मिटाती जाती हूं
क्या लिखूं कोरे सफ़हे पर, समझ नहीं पाती हूं।
कभी खुशरंग शब्दों को लिखती ही चली जाती हूं
ऐसा तो मेरे साथ होता रहता है अक्सर
नहीं जानती क्या ये औरों के साथ भी होता है
या मेरी बढ़ती उम्र का तकाज़ा है।।
