STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

3  

Surendra kumar singh

Abstract

ऐसा भी होता है क्या

ऐसा भी होता है क्या

1 min
172

ऐसा भी होता है क्या

जैसा हो रहा है

जैसा कि मैं

महसूस कर रहा हूँ

सपने, हकीकत की

तरह मेरे आस पास

चहलकदमी कर रहे हैं

कभी मैं सपनों को

देखता हूँ

कभी सपने मुझे देखते हैं

मैं विस्मय से

भरा जा रहा हूँ

सपने थे

और बिना किसी प्रयास

हकीकत में बदल कर

मेरे आस पास

चहलकदमी कर रहे हैं

शायद यही प्रेम है

महसूस भर होता है

पर कर जाता है वो सब

जो मुश्किल होता है

बहुत मुश्किल होता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract