ऐ क़िताब सुन तो ज़रा!
ऐ क़िताब सुन तो ज़रा!
ऐ किताब सुन तो ज़रा,
इतनी ज्ञानी, फिर भी तुझमें ना घमंड भरा।
न डिग्री तुझे, ना ही मैडल मिला,
हर सवालों के जवाब तुझमें,
फिर भी तूने ना "के.बी.सी" लड़ा।
बैठी रहती चुपचाप अपनी अलमारी की
धूल भरी शुष्क ज़मी पर,
और हम इंसान कुछ समझ क्या पाते,
तन कर चलते सबकी हँसी उड़ाते।
ऐ किताब सुन तो ज़रा,
इतनी ज्ञानी, फिर भी तुझमें ना घमंड भरा।
आखिर हम भी तो आये थे तुझी से सीखने,
तुझी में ढूंढने, तुझी से पूछने।
खोलती रही तू हर राज़ धीरे-धीरे,
समझते रहे हम, तेरे अल्फ़ाज धीरे-धीरे।
लोग आते रहे, तुझमें पाते रहे,
तू बदली नहीं, सब बदल से गए।
ना ही होड़ है तुझमें कुछ नाम कमाने की,
ना ही सोच है तुझमें किसी को गिराने की।
सच्चा ज्ञानी वही जिसमें दंभ ना हो,
वो ज्ञानी ही क्या जिसमें घमंड भरा हो।
ऐ किताब सुन तो ज़रा,
इतनी ज्ञानी, फिर भी तुझमें ना घमंड भरा।