ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर
ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर
ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर
वरना अंजाम बुरा होगा
जो तू बेवक़्त बहती हैं
मेरे मेहबूब की जुल्फें बिखरती हैं।
इन बिखरी जुल्फ़ भरी अदाओं पे
मेरा दिल मचल जाता है
लैला बनके इस मजनू की बात तो सुना कर
ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर !
इन पत्तों को हिलाती है अच्छा है
बदन की गर्मी मिटाती है अच्छा है
पौधों को नई जिंदगी दे जाती है,
ऐ भी अच्छा है
बस मेरी एक ही गुजारिश है
आखिरी की मेरी जानेमन को
छूकर मदहोश ना किया कर।
ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर !
कुरेदती हैं तेरी खुशबू,
इस दिल को कतरा-कतरा
मिट्टी की महक भी पास लाती है
हवा ज़ब तू चलती है,
बेफ़िजूल मचलती है
दर्द उठता हैं सीने में सोलह, सत्रह, अठरह
इस तरह बेबस पे जुल्म ना ढाया कर
कमजोर हूँ इसलिए,
ज्यादा ना सताया कर
ऐ हवा तू अपनी हद में रहा कर !