अहिल्या
अहिल्या
मैं क्या देखूँ ?
मैं क्या लिखूँ ?
बंद कमरों में
असंख्य अहिल्या
छल-कपट से
शिकार बनी
इंद्र जैसे हैवान की
लज्जा-शर्म के मारी
दर्दनाक व्यथा झेलती रही
शोषण का घूंट पीकर
स्वयं को रोज कोसती रही
कौन सुनता है, कौन देखता है ?
सब व्यस्त हैं सियासी रोटी पकाने में ।