अगर कोई अपना हो ही न
अगर कोई अपना हो ही न
सफल होते है हम
जीवन में कई बार
लेकिन उसका क्या फ़ायदा,
अगर कोई जश्न मनानेवाला हो ही न
कोई अपना, हो ही न
!
सदा सफल होना, ज़रूरी नहीं
कई बार हार भी माननी पड़ती है हमें
लेकिन वो हार भी कैसी,
जब कोई हौसला दिलानेवाल हो ही न
कोई अपना, हो ही न !
और उस हँसी-मज़ाक का क्या फ़ायदा,
जब कोई साथ हँसनेवाला, हो ही न
कोई अपना, हो ही न !
और उस गम का भी क्या फ़ायदा,
जब कोई सहारा देनेवाला कंधा, हो ही न
जब कोई अपना, हो ही न !
और वो आँसू भी,
बहे कैसे,
जब उन्हें पोछनेवाला, कोई हो ही न
कोई अपना, हो ही न !
और वो दिल भी कैसा,
जिसमें खटास भरी हो,
जिसमें ईर्ष्या और अभाव हो,
किसी भी इंसान के प्रति,
इंसानियत दिखा न सके जो,
और अपना न मान सके किसी को।
क्योंकि अपनों से तो खुशहाल बनती है ज़िन्दगी,
वरना ज़िन्दगी की मन्नत माँगते ही क्यों ?
ऐसे अपनों की ज़रूरत है हम सबको,
ताकि ख़ुशनुमा बना दे वे,
हमारे जीवन के हर लम्हे को।
