अधूरा इज़हार
अधूरा इज़हार
तुझे नज़्म बना के पढ़ लूँ मैं,
ताबीज़ बनाकर रख लूँ मैं।
मेरी हर बात में तेरी बातें हों,
कुछ ऐसी बातें कर लूँ मैं।
थाम लूँ तेरा नर्म हाथ मैं कुछ इस तरह,
कि अपनी इन लकीरों को एक-सा कर लूँ मैं।
अब साया तेरा बन जाऊं,
तेरे इतने करीब मैं आ जाऊं।
''अंजान'' है तू जिस मोहब्बत से,
मैं वो मोहब्बत बन जाऊं।
अब तू जो कहेगी उस पर ऐतबार करना है,
इकतरफा सही बस तुझसे प्यार करना है।
परवाह नहीं तेरा जवाब क्या होगा,
मुझे तो बस अधूरा इज़हार करना है।