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S P PANDEY

Romance

3  

S P PANDEY

Romance

अधूरा इश्क़

अधूरा इश्क़

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मेरे संजीदा जज्बात ओर तुझसे गहरा प्यार, 

कुछ भी असर न तुझपे अब कैसे करें प्यार,


सुना था पिघलता है पत्थर भी जज्बातो से, 

तू कौन सी मिट्टी का बना है मेरे यार।


 मैं मरता भी रहा तो तेरी हाँ नही होगी,

 की फिर भी तुमसे मिन्नतें मैंने हज़ारों बार।


पता नही क्यों हक़ जताता हुँ तुझपर हर वक़्त, 

शायद ये सोचता था तेरे दिल से जुड़े हैं तार।


तुमने कभी न रोका अपनी ज़िंदगी से जाने से, 

बेशर्म तेरे दर बैठा न जाने किस इंतेज़ार।


सब कुछ तो मालूम था फिर भी क्यों न रुका मैं,

शायद होना था जलील तुझसे हज़ारों बार।


बदकिस्मती न कहूँ तो फिर ओर क्या कहूँ,

जिसे छूते ही मेरे दिल मे होती है तेज हलचल,

उसके दिल का लहू जम जाए हर बार।


रोज हार कर लौटना आसान नही होता है,

बेगैरत हुँ मैं कितना ये तुम तो जानती हो,

फिर भी तुमसे ही खेलने को रहता हुँ बेकरार।


अपने दिल का लगाता हुँ तेरे सामने मैं बाजार,

तू रोज इससे खेले तू हर रोज इसको तोड़े, 

टूटे दिल को समेटना अब है मेरा कारोबार।


दोष तुन्हें न दूंगा बेफिक्र हो जिओ तुम,

मर भी गया तो दिल को कमजोर दूंगा करार।

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