दिल की बात
दिल की बात
मैं भी हूँ बंधन में तू भी है बंधन में
फिर क्यों दिल धड़कता है,
तेरा मुझ में मेरा तुझ में।
ना जाने कुदरत ने क्यों खेला ये खेल,
क्यों भर दिए जज्बात पहले मुझ में
फिर तुझ में।
ख़ुदा ने तुझ से गर मिलाया होता पहले ही,
मैं समा गया होता तुझ में ओर तुम मुझ में।
गर मांगने की इजाज़त होती उस ख़ुदा से,
तुझे मांग लेता मैं सच मे खैरात में।
रहना मेरे साथ ये गुज़ारिश है तुझ से,
जुदा हुई जो मुझसे मर जाऊँगा विरह में।