दिल का दर्द
दिल का दर्द
राख खुद ही कर दिया अपने दिल को मैंने जला कर,
सोचा था रौशन करूँगा किसी के दिल की महफ़िल।
चाहा के वो करें सिर्फ मेरे ही दिल की फिक्र,
औरों की उनकी फिक्र मुझे नागवार गुजरी।
जल गया होगा मेरा दिल अनजाने में ही उनके हाथों,
मजबूर होंगे वो भी अपने ही दिल के हाथों।
में भी जला पर मेरे दिल ने धुएँ किये ज्यादा,
नई रोशनी की कुछ बात अलग होगी।
यकीन था कि तप कर मेरा दिल सोने जैसा होगा,
मिट्टी का ये बना था बस ये राख ही होना था।
जलन में जलते जलते दिल राख हो गया,
सपने बुने थे जितने सब खाक हो गया।
जरूरत मुझे थी इसलिए खुद ही जला मैं,
कोई कह देना उनको हर जुर्म से वो बरी हैं।