अधमरी कविता
अधमरी कविता
अधमरी कविता
प्यासी भूखी
किन्ही शब्दों के अर्थों से
बेबाक ही अपनी सृजनता खो देती
समानार्थ होते होते ही
ख़ुद को ही विलोम रूप में ढाल लेती
कहती तुम अज्ञान
मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है
बस अपने काम अनुरूप तोड़ देता जब मन जोड़ देता
क्या ऐसे मैं जीवित रह सकती हूँ
मरना ही सही ऐसे जीने से बेहतर
आक्रोश में जलती
अधमरी कविता
बातो के अनुकूलित
ना राग
ना ही स्वरुप
ना ही बंधन
ना ही नियम
केवल ख़ुद की अब सहनशीलता भी ज्वाला की अग्नि फट रही
जलना चाहती ख़ुद को कहती मारना ही सह
ी इस तड़प से बेहतर
जहाँ मै निस्वार्थ हूँ
किन्तु स्वार्थ की ये दुनिया
मैं आजन्म रहूँगी
लेकिन अपनी शीतलता से
मेरे जगह अन्य कोई लेगा
लेकिन मै
फिर भी अधमरी रहूँगी
मैं जीना चाहती हूँ
प्रेम की दुनिया में
ना की मोह माया में
जो किसी का नहीं
मैं अधमरी हूँ
जीवित रहूँगी जब तक मेरा प्रेम रूप सौंदर्य
सबको सीखा ना जाओ...
अधमरी कविता
निःशब्दता की ओर प्रस्थान
शांत हो गई
ना आवाज़ ना आक्रोश सिर्फ़ एक उम्मीद आँखों में थी...