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चंद लम्हे

चंद लम्हे

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चंद लम्हे मेरे हाथों के लकीरों से छूट गये

फिर से गोदना चाहा स्याही के सरगम सारे रूठ गए

 

एहतियात मुझे हर बार याद दिलाती तेरी ख़ुशी

सहेज ले इन्हे अभी, कोई ना जानता वक़्त की हँसी

 

चंद लम्हे मुझे हँसना सीखा देते 

जब कभी तेरी जुल्फों में मेरा छिपना याद दिलाते

 

अकसर ही तेरी हर साज भी उस तितली के रंग है

जो हर मंजर को रंगने का ढंग है

 

कभी शिकायत भी हमेशा की तरह खामोश हो जाती

जब तेरी हँसी से मुरझाए से चेहरे खिल जाते

 

चंद लम्हे हाथों की लकीरों से छूट जाते

लेकिन गोदना केवल स्याही ही ना करती..


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