दहलीज़
दहलीज़
पैरो के निशान जो छोड़ कर चले गए
अब दहलीज़ के आगे जाना मना है
अब तो सँवरती है जिंदगी खामोशियों में
अपनो का भी आना जाना मना है
आसमान से बारिश की बूंदो ने कोशिश जो की
अब बह कर उस पार जाना मना है
जब सफाई के तौर तरीकों से मिट जाए
ऐसे में राहो से जो गुज़रे उनका आना मना है
इस तरह रह गयी जो बातो की लकीरें
अब दहलीज़ के आगे जाना मना है
बांट दिए कई रिश्तो की मुस्कुराहट को
उस सफर में फिर से लौट जाना मना है
आज दहलीज़ें जीती है ऐसी ज़िन्दगी
तन्हाई को भी लौट कर आना मना है।