उम्मीद
उम्मीद
गैरत की ख़ुशी में अश्को बहाये
मुलजिम कोई और नहीं मै खुद हूँ
इंसानियत की जुल्मत नकाब पहनती है
सच के सिरे पर इल्जाम लिखती है
माजदा भी मेरा खुदा न सुनता
तब जिंदगी भी अकेली इंतकाम देखती है
फिर खुद के लबों पे सुकून सा आया
इंतकाम मेरा फूलो में समाया
प्यार ही खुदा का नैमत बन गया
जब मेरी आँखों में जर्रा सा रास्ता दिख गया...
अमन श्रीवास्तव