तुम्हे चिढ़ाना
तुम्हे चिढ़ाना
तुम्हारे मन से धागे जोड़ लिए है
जब भी देखता हूँ हर हस्ते चेहरे में तुम दिख जाती हो
बेपनाह प्यार करता हूँ
अक्सर तुम्हारा मुझे डाटना
मेरे को अपना जैसा बनाना सब तुम्हारा बहाना है
मै जान कर भी अनदेखा करता सच
में नूर कहुगा तो शर्मा जाओगी
इसीलिए तुम्हारा नाम बिगाड़ देता हूँ
गुस्सा तो करोगी लेकिन प्यार से
तुम्हारे मन से धागे तो कब के जोड़ लिए है
बस तुम्हे उस चाँद की तरह देखता हूँ
जो मेरे नजदीक हमेशा रहता
अकेला रहता हूँ
फिर भी बाते करता है...
की ठहर मै तुम्हारे साथ हूँ
बेपनाह इबादत से तहजीब सिखाता है
समझता है..
धागे का मोल दिल से है
दिल की बात अनकही होती है...
समेटता हूँ फिर
धागो को और तोड़ देता हूँ
जान कर की तुम्हे ही क्यों प्यार करता हूँ..