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Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

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Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

अधिकार और कर्तव्य

अधिकार और कर्तव्य

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कर्तव्य और अधिकार एक दूसरे के पूरक ही सही ,

लेकिन फिर भी

हो जाती है जंग कभी,

अधिकार और कर्तव्य के बीच में।


अधिकार तुमने दिया नहीं

कर्तव्य मैंने किया नहीं।

मैंने छोड़ दी कोई भी अधिकार पाने की इच्छा।

जीवन में आगे बढ़ आई

अपने सारे अधिकारों को छोड़ आई।

अहम के मद में थे चूर तुम तब।


मेरे त्याग को अपना अधिकार समझा।

अब समय बदल चुका है

अहम का नशा उतर चुका है

बदले तुम हो मैं नहीं।

अब तुम्हें याद आ रहे हैं कर्तव्य मेरे।

लेकिन अब मैंने वह निभाने ही नहीं।

फिर भी कभी सोच में मैं पड़ जाती हूं।


आत्म सम्मान और अभिमान में शायद मैं फर्क नहीं कर पाती हूं।

मन उदास है, शुरुआत ही क्यों गलत हुई।

अब जब कर्तव्य और अधिकार की सीमा रेखा से बढ़ गए हैं आगे।

हे परमात्मा ऐसा लगता है मानो हम हैं कोई नींद से जागे।

अब पीछे लौट सकते नहीं

आगे बढ़ सकते नहीं।


अब कर्मों के फल हैं जो भुगतने पड़ेंगे दोनों को ही।

तुम्हारी दशा देख सकते नहीं,

तुम्हारे दुख दूर कर सकते नहीं।

अपने जीवन में दोबारा से तुम्हें वह सम्मान कभी दे सकते नहीं

परमात्मा से एक ही प्रार्थना है,

हमारी इच्छा चाहे कुछ भी हो,

लेकिन परमात्मा हमसे कार्य करवाना वही।

जो हो तुम्हारी नजरों में सही।


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