अच्छे थे अकेले
अच्छे थे अकेले
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अच्छे थे अकेले
अच्छे भले अकेले थे,
अच्छे थे अकेले,
लाइफ में लफड़े न थे ,
न ही झमेले,
मस्त थी ज़िन्दगी,
बिंदास रहते थे,
मन मर्ज़ी करते थे,
लेट से सोते जागते थे,
जो शादी का जंजाल लिया,
लाइफ का बंटा धार किया,
गिटार छोड़ के पकड़ लिए,
सब्जी के थैले,
तभी तो, अच्छे थे अकेले।।
खुल कर हँसते गाते थे,
महफ़िल रोज़ सजाते थे,
न किसी की मिन्नत करते थे,
न किसी से डरते थे,
एंट्री वाइफ की हुई ऐसी,
लाइफ की हो गयी ऐसी तैसी,
बियर और चिकन छोड़ खा रहे,
ब्रेड, स्प्राउट्स और केले,
तभी तो, अच्छे थे अकेले।।
अब दुख के पैमाने छलके,
यारों को मिलने को तरसें,
शॉपिंग में बिजी रहते हैं,
मोटी को बेबी कहते हैं,
आफत को गले लगा डाला,
खुद का बैंड बजा डाला,
सुख चैन लूटा के सारा ले लिए,
धक्के, उम्र भर के रेलम-पेले
तभी तो, अच्छे थे अकेले।।