अच्छा है तुम देवी हो
अच्छा है तुम देवी हो
काश! मैं भी देवी होती तुम्हारी तरह माँ,
तो मेरी भी पूजा होती।
जैसे तुम मंदिर में सुरक्षित महसूस करती हो,
काश! मैं वैसा घर में महसूस करती।
मंदिरों में घंटा बजाने वाले पुरुष,
अपनी गालियों में अक्सर माँ-बहन शब्द का प्रयोग करते है।
जिन हाथों से तुम्हारी आरती करते हैं,
भीड़ में उन्ही हाथों से मुझे छूने की कोशिश करते हैं।
जिन हाथों से लगाते हैं तुम्हें भोग,
उन्ही हाथों से भोग बनाने वाली पत्नी पर हाथ उठाकर उसका तिरस्कार करते हैं।
काश! वो समझ पाते एक छोटी बच्ची और वयस्क औरत में फर्क
काश! वो एक टॉफी के बहाने, बच्ची की मासूमियत को तार-तार नहीं करते।
अच्छा है तुम देवी बन मन्दिर में बैठी हो
मंदिर के बाहर होती तो, तुम भी सुरक्षित ना रहती।
