अभाव
अभाव

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एक अपनेपन का एहसास
होता है मुझे कभी कभी...
फिर अगले ही किसी पल
अजनबी तुम्हें पाता हूँ !
कभी तो तुम्हारे बिना ही
साथ रहता हूँ मैं तुम्हारे,
और कभी तुम्हारे सामने
भी तन्हा सा हो जाता हूँ !
साथ न रहो तुम बेशक
कभी मेरे पास तो रहो...
मैं ही कहा करूँ हमेशा
तुम भी तो कुछ कहो !
आज़मा लो मुझे तुम
या फिर अपना समझो...
जान लो पूरी तरह मुझे
फिर हिचकिचाहट न हो
हम दोनों वैसे एक हैं...
कहीं कोई न अलगाव,
दूरी कहीं नहीं है कोई
बस समर्पण का अभाव !