अब से पहले
अब से पहले
पहले भी रात होती थी, चांद होता था ..तारे होते थे।
मैं उन तमाम रातों में जो चटक जाते थे तारे,
उन्हें देख कर ख्वाब बुना करता था।
मैं जागता था ......अनगिनत सपने देखने के लिए।
मैं तलाशता था उन राहों को जो है ........मेरे लिए।
जिंदगी की राह में लेकिन .....सब बदल गया।
रात को वही है ....लेकिन आसमान बदल गया।
क्या ......मैं सोचता था...अब क्या मैं सपने बुनूं।
यह कहाँ ठिठक गया ....किससे कहूँ।
वो भरम कि मैं अकेला नहीं, मेरी तन्हाई से वो भी पिघल गया।
अब सोचता हूँ.....कहूँ भी तो क्या कहूँ।
आज भी जाग रहा हूँ.......पहले की तरह।
लेकिन ख्वाबों का सिलसिला लगता है कि थम -सा गया।
जिंदगी जो मृगतृष्णा दिखा रही थी और .....मैं तो प्यासा ही रह गया ।
टूटे हुए ख्वाबों के आईने में ,फिर से अपने टुकड़े चुनने लगा।
पहले भी अपने साथ था .....तन्हा तो नहीं ।
साथ था अपने..... मैं अकेला तन्हा नहीं।
लेकिन फिर आज ..फिर से खुद को बिखरा हुआ पाता हूँ।
हाल है कि अपना चेहरा भी नहीं पहचान पाता हूं।