अब मैं चूड़ियाँ न पहनूंगी ।
अब मैं चूड़ियाँ न पहनूंगी ।
सहमी रही अब तक
अब मैं किसी से नहीं डरूंगी
थामूंगी हथियार हाथों में
अब मैं चूड़ियां नहीं पहनूंगी।
सबक दूंगी इस
घृणित समाज को
जो होगा सही
अब बस वही कहूंगी।
दबी थी अब तक
संस्कार की खातिर
सत्य के साथ स्वयं का
सम्मान करूंगी।
न होगी आश्रित
अब किसी पर
कर स्वयं पर विश्वास
आत्मनिर्भर बनूंगी।
प्राचीन काल से
थी दयनीय स्थिति
आधुनिक बन
अब न सहमूंगी।
अपने मन की
सब कर जाऊंगी
हृदय सागर में
मन तरल सी अब मैं बहूंगी।
अबला थी अब तक
अब सबला बनकर
अपना हित सोचकर
अपने मन की भी सुनूंगी।