आज़ादी का चरित्र!
आज़ादी का चरित्र!
हम गिरे थे उसी पत्थर पर,
जिस पर हमने अपनी नींव डाली थी।
जमीन कठोर थी पर नदी नहीं,
मेरी परछाई वही बनी थी जहाँ आज़ादी की समाधि सजी थी।
वो मुसाफिर कौन था जिसने ऐसा सीख दिया,
आज़ादी के लिए अपना जीवन खुशी - खुशी कुर्बान किया।
समानता, न्याय और आत्मसम्मान का जिसने पाठ सुनाया,
वही असमानता पूर्वक रहकर असली आज़ादी के जशन का
मजा नहीं उठा पाया।
फूलों से हमारा भारत सजा था,
आज़ादी के पलटवार का बाजा बजा था।
समय ने अच्छाई से मित्रता निभाई,
वहीं छन भारत के आज़ादी की हुई सुनवाई।
भारत की आज़ादी शकुनि के घाव से भी ज्यादा गहरी है ,
15 अगस्त का ये दिन हमारे जान से भी ज्यादा प्यारी है
और इंसान रूपी दुष्टों की टोली भारत के भूमि से फिर हारी है।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!
