जीत से आख़री मुलाकात!
जीत से आख़री मुलाकात!
अरे! मैं तो तुमसे कल ही मिला था,
मैने तो तुम्हे जश्न और घमंड में ही बिता दिया।
अच्छा! कम से कम ये तो बतादो वापस मिलने कब आ रहे हो।
मैने तुम्हे पाने के लिए एक दशक लगा दिए और तुम एक साल नहीं टिक पाए।
अगर जीवन का ये ही सच है तो जीत और हार के उलझन में क्यों लगे रहें,
वातावरण और जीवन के सुखों का मज़ा क्यों नहीं लिया जाए।
क्या इस मज़े के लिए मुझे पैसों या समाज में इज्ज़त की ज़रूरत है?
समाज का क्या कहना है???
