STORYMIRROR

Raj Aryan

Abstract

4  

Raj Aryan

Abstract

बाज़ी पलट गई!

बाज़ी पलट गई!

1 min
440

साज़िश किया था मैने,

हँस-हँस के रुला दिया।

वो तारा नीचे आ रहा था,

मैन उसे भगा दिया।


मुझे नहीं पसंद है परोपकार,

बिना लक्ष्य साधे नहीं चलाऊंगा बाण।


मछली की निर्बलता देखो,

उसके मन का भाव देखो,

फिर सोचो वो कहाँ से आया था,

कहाँ तक जाएगा।


दुख वो बला है,

जो सबके अंदर वास करता है,

अपने होने का आभास कराता है,

आशा देता है और जीवन व्यर्थ कर देता है।


मैं उस बलवान से मित्रता करना चाहता हूँ,

जो स्वयं का नहीं जीवन के अवगुणों का नीचता का अंत कर दे ।


चक्र निकलेगा,

आज तेरा है,

कल मेरा निकलेगा।

सूरज तुम्हारे लिए डूबा है, 

पर भस्म नहीं हुआ है।।।

कल वापस उगेगा पर शायद तुम्हारा "कल" नहीं बचेगा!!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract