आवारा कुत्ता
आवारा कुत्ता
हूँ
मैं घर की बहू
सासु को मम्मी कहूँ
आमतौर पर सभी कहतीं हैं
जहाँ ननद, सास साथ रहतीं है।
मम्मी की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी
कुछ नहीं खाया फिर भी
न कुछ बचा, न बचाया
बरतन सारे माँज दिया
बिस्तर बिछाया, सब निपटाया
बच्चे को लोरी सुनाकर सुलाया।
तीन बजे रात
लॉन वाले गेट पर दस्तक दी
मैंने सोते हुए सुनकर अनसुनी की
धीरे-धीरे रोते-रोते रोने लगा तेज़
उचट गई नींद, होने लगा क्लेश
बिस्तर से उठना पड़ा
जा करके कहना पड़ा दुर-दुर-दुर-दुरओ
गेट के उस पार खड़ा
न जाने को जैसे अड़ा ज़ोर-ज़ोर रोने लगा
पापा को, मम्मी को सारे ही घर-भर रो-रोकर दिया जगा
मम्मी ने नाम लिया
मैंने भी थाम लिया
अपराध बोध उन्हें जैसे सताने लगा
रोने का मतलब समझ में था आने लगा
पूछा
कुछ है
कैसे कहूँ न…..बस गरदन हिला दिया
फ्रिज खोलकर के कहा
कैसा अकाल पड़ा
जल्दी से रोटी बना
मैंने कहा चार बजे रात को
गुस्से में बोलीं सुना नहीं बात को।
एक हाथ खिलाता रहा
दूसरा सहलाता रहा,
दुम वह हिलाता रहा
रोज़ पाता एक-दो
आज पूरे पांच को खा कर चाट रहा मम्मी का पाँव था
बात मेरे घर की है
दिल्ली शहर की है
आप न समझ गए लेना यह कोई गाँव था।
सोच रही हूँ
हाल जब यह शहर का है
कमाते हुए यहाँ एक-एक घर का है
उनका क्या हाल होगा
बिना पैसों के गाँव गए
सड़कों पर चलते हुए ज़िंदा जो बच के गए
जहाँ काम नहीं, काज नहीं
खेत और अनाज नहीं
कुत्तों को कौन कहे-बच्चे हैं भूखे पड़े
देश की सरकार कहे आओ चुनाव लड़ें।
