आवाज़
आवाज़
खटखटाऊँ किस चौखट पर
आवाज़ दूँ किस चौराहे पर
इस शहर की
हवा बहरी है
चीखती, कांपती, गूँजती आवाज़े
सहमाती है मेरे आईने को
किसको पुकारूँ,
इस शहर के आईने में
अक्स नहीं उभरता
थरथराती आवाज़ों में
जिंदगी लड़ रही है
साथ के लिए कब तक पुकारूँ
गूंगी सांसों के शहर में
इस सन्नाटे के शहर में
मरी आत्माओं को सुनाने
हर चौखट खटखटाउँगा
चौराहे पर पुकारूँगा
पुकारूँगा
पुकारता ही रहूँगा
आवाज़ के रहने तक !