आत्मावलोकन
आत्मावलोकन
निवीड़ अंधकार में ढूंढना है प्रकाश को,
महकती इस मलयज शीतल सुवास को।
झंकृत कर दे जो इस जीवन साज को,
करना है अनुमोदित उस आवाज़ को।
पाकर जिसे सिद्धार्थ हो गए थे बुद्ध,
कर देगा जो हमारे अंतर्मन को शुद्ध।
आखिर कहां मिलेगा वह प्रकाश,
देगा जीवन को जो नव आभास।
आखिर कौन देगा वह आवाज़,
जो पूर्ण करेगी यह जीवन काज।
शायद वह है कहीं छुपा हममें ही,
पर हमने कभी उसे जाना ही नहीं।
हम हैं उस भ्रमित कस्तूरी मृग की तरह,
भागता ढूँढता जो निज सुगंध हर जगह।
जीवन भर अब यूं ही नहीं भागते जाएंगे,
कर आत्मावलोकन हम बुद्ध हो जाएंगे।
