आते जाते रहें
आते जाते रहें
कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां पहुंचहमेशा,मन पर से हट जाती है धूल।
ध्यान गमों से हट जाता है और,हर मन में खिल जाते हैं खुशियों के फूल।
पुष्प सदा बिखेरें हम सबके ही पथ पर , सब मार्गों से चुन लें सारे ही शूल।
नहीं बनें हम किसी को बाधा, बनना है सहायक ,यह तो कभी न जाएं भूल।
निज जीवन लक्ष्य की ओर कदम हों, और जहाॅ॑ पर हो विकास की बात।
शारीरिक,बौद्धिक और नैतिक मूल्य वृद्धि हो,सबके समझें हम ज़ज़्बात।
स्वार्थ छोड़ परमार्थ का चिंतन हो जहां, बेहतर बनें सामाजिक हालात।
मानसिक झंझावातों से हो मुक्ति,मन उलझा रहता है जिनमें दिन-रात।
बन हम प्रियजन स्वजन बनाएं, विश्व बंधुत्व है प्राचीन अपनी सौगात।
नहीं भाव केवल शब्दों का, आचरण में भी परिलक्षित हों ये ज़ज़्बात।
सबकी सुनकर अपनी सुनाएं ,और सार्थक सहयोगी कदम उठाएं आप।
पुण्य हैं वे सत्कर्म जो सुख देते हैं,और जो दुख देते हैं वे तो होते हैं पाप।
नैतिक कार्यों से ही सुख देवें , अनैतिकता से खुद को सदा बचा के रखें हर हाल।
सबको तो ईश्वर ही ना खुश रख पाता, सबको खुश रखने का हम छोड़ें ख्याल।
कोशिश सर्वश्रेष्ठ करते रहनी है हमको, जो ना हो पाया कभी न उसका करें मलाल।
सारी चाहत तो प्रभु करें न पूरी, और जो हैं हितकर अच्छी पूरा करेंगे वे हर हाल।
हम सब माध्यम हैं इस रंगमंच के, और एक सर्वनियन्ता प्रभु के अनेक हैं नाम।
विविध रूप पूज हम एक ही ध्याते,गॉड - खुदा - माता -शिवशंकर - प्रभु राम।
पूजा गृह निज मन को बनानें , और निज संस्कृति जीवित रखना है अविराम।
संस्कृतियॉ॑ क्षेत्र-काल अनुरूप सभी, उन्हें सदा सराहें सद्भाव रखकर करें प्रणाम।
जैसे नियमित जाते हैं हम देवालय,नियमित पहुॅ॑चते पार्क समय के अनुसार।
खेल समय-संग -रूचि अनुरूप खेलते, सुख-दुख बाॅ॑टें और करें सुविचार।
समय की आहट को पहचानें ,करें अपने में भी परिवर्तन लेकिन सभी समयानुसार।
परिवर्तन करते स्मृत सदा ये रखना, कि अखिल विश्व है अपना ही एक बड़ा परिवार।
