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pratibha dwivedi

Abstract

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pratibha dwivedi

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आसमान सूना सूना लगता

आसमान सूना सूना लगता

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चाँद अगर ना होता

तो रात में आसमाँ सूना सूना लगता

और धरती पर रोशनी का नूर ना बिखरता।


शायरों की शायरी में कशिश ना आ पाती

रात में प्रेमियों की मुलाकात ना हो पाती

आँखों ही आँखों मैं बात ना हो पाती।


रूठने मनाने की वो रात फिर ना आती

ना करवा चौथ होता न ईद फिर होती

ना मिलने मिलाने की प्रीत रीत होती।


रातों को प्रेम के गीत ना पनपते

चाँदनी रात में छत पर चाँद ना दमकते

शुक्र करो कि चाँद रातों को रोशन करता है

अंधेरे को चीरकर दूधिया रंग भरता है।


वरना अंधेरे में दुनिया खो जाती

शीतलता से दुनिया परिचित ना हो पाती

शीतलता से दुनिया परिचित ना हो पाती !


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