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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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आसमान का टुकड़ा

आसमान का टुकड़ा

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मेरी तो जान है आसमान का वह टुकड़ा 

जो रोशनदान में से झाँक पड़ता है 

सख़्त दीवारों और सींखचों का भी लिहाज़ नहीं रखता

वे तो चाहते हैं 


कि मैं इस टुकड़े के सहारे ही जिऊँ 

और फिर कहते क्यों नहीं इससे 

कि वहीं जम जाए, नए-नए रंग न बदले— 


देखो यह टुकड़ा हर पल रंगत बदलता है 

इसके हर रंग के साथ लगा है ऋतुओं का सौंदर्य 

ज़रा पूछ देखो इस टुकड़े से, मौसम से न बँधे 

फेंक दे यह अपनी देह से 


ऋतुओं की परछाइयाँ 

यह टुकड़ा तो अपने कंधों पर 

पूरा आसमान ही उठाए फिरता है... 


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