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नम्रता चंद्रवंशी

Romance Tragedy

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नम्रता चंद्रवंशी

Romance Tragedy

आशा - भाग 4

आशा - भाग 4

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..आशा सुरभि मेम साहब के घर में खिड़की तरफ (घर के पीछे का भाग) बर्तन धोने लगी और विकी हॉल में बैठकर टीवी देखने लगा)

अब उसके आगे....

आशा घर के काम निपटा कर अपने घर आकर देखा तो मंजू चाची और विमला मौसी कुछ बातें कर रही थी । शायद वे रमन चाचू के पत्ते पर जो चिट्ठी शुक्ला गुरूजी से लिखवाई थी उसको डाक में डालने की बात कर रही थीं। आशा के आते ही दोनों बिल्कुल चुप हो गईं। आशा ने छेड़ते हुए कहा -" मंजू चाची को कहां पता चलेगा, कल मै मेम साहब के घर जाते समय चिठ्ठी डाक में डाल दूंगी। "आगे भी वो रुकी नहीं और कहना जारी रखा - "मां तुम चिंता क्यूं करती हो,तुम जल्दी ही बिल्कुल ठीक हो जाओगी,मै हूं ना। "

आशा की इन बातों को सुन कर विमला मौसी के होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट दौड़ गई,पर आंखें नम हो गईं थीं उसकी। विमला मौसी मन ही मन सोचने लगी कि - " कितनी समझदार हो गई है मेरी गुड़िया,हालातों का सामना करना कितनी जल्दी सीख गई। "

विमला मौसी ने आंखों में प्यार भर कर आशा को अपनी ओर आने का इशारा किया , आशा झट से विमला मौसी के गले से लिपट गई और अपने हाथो को विमला मौसी के बालों में फेरने लगी।

तब तक सामने ही बैठी मंजू चाची थोड़ा मजाकिया अंदाज में बोल पड़ी - "आशा है तो मेरी क्या जरूरत,अब तो हर जिम्मेदारी संभाल लेगी तेरी बिटिया,अब मै जाती हूं अपने घर,आशा तू विमला का ख्याल रखना। "

आशा ने मुस्कुराते हुए कहा - " ठीक है मौसी अब तू जा,कल सुबह आ जाना फिर से। "

आज का दिन किसी तरह बीत गया। आशा रात भर विमला मौसी के ही इलाज के बारे में ही सोचती रही,उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें क्या नहीं । उसने सोचा कि सुरभि मेम साहब से बात करेगी इस बारे में।

अगले दिन फिर से आशा मंजू चाची को आवाज लगाते हुए की - " चाची मैं जा रही हूं,जरा ख्याल रखना मां का। " आशा सुरभि मेम साहब के घर के लिए निकाल गई। रास्ते में डाक घर में वो डाक टिकट लेती है और अंतर्देशी में चिपका कर चिट्ठी भी डाक में डाल कर सुरभि मेम साहब के घर चल पड़ती है।

आशा आज अपना एक पुराना फ्रॉक पहनी थी जो कई दिनों से काठ (लकड़ी) के बक्से में बंद था ,वैसे भी उसके पास स्कूल ड्रेस के अलावा बहुत ही काम कपड़े थें। उसने आज स्कूल ड्रेस पहनने से परहेज़ किया था ताकि विकी उसका मज़ाक न उड़ा सके।

आज अशोक चाचा भी घर में ही थे,सुरभि मेम साहब ने शायद उन्हें विमला मौसी के बारे में बता दिया था इसीलिए आशा को देखते ही अशोक चाचा ने पूछा - " कैसी है रे विमला अभी?" आशा ने अपने सर को नीचे कर के धीमे स्वर में कहा -" ठीक नहीं है चाचा,उठ भी नहीं पा रही है,सिर्फ एक तरफ ही ठीक है,एक तरफ का बॉडी काम नहीं कर रहा है। "

अशोक चाचा ने ढांढस बंधाते हुए कहा - "तू चिंता मत कर बिल्कुल ठीक हो जाएगी वो। "

इस पर आशा ने बस हल्की सी मुस्कुराहट में प्रतिक्रिया दिया- " हूं...। "

सामने ही सोफे पर बैठा विकी सभी की बातें सुन रहा था। विकी भला क्यूं पीछे रहता वो भी सुझाव देते हुए बोला -" क्यूं न विमला चाची को जिला अस्पताल में लेकर चलें,वहां तो आयुष्मान भारत के अन्तर्गत उनका फ्री में बेहतर इलाज हो जायेगा। "

सुरभि मेम साहब इन पछड़ों ( मुसीबतों) में नहीं पड़ना चाहती थी , वो विकि को घूरती हैं और आंखों से ही चुप रहने का इशारा करती हैं। विकी मां के इशारे को समझ जाता है पर अपनी बात पूरी कर के चुप होता है।

विकी अशोक चाचा और सुरभि मेम साहब का इकलौता संतान था। अशोक चाचा उसके किसी भी बात को नहीं टालते थे। उन्हें मन ही मन विकी के सोच पर गर्व हो रहा था। वे विकी के पीठ पे हाथ रख कर खुश होते हुए बोले - " ठीक है बेटे हम कल ही विमला को अपने स्कॉर्पियो से जिला अस्पताल लेकर जाएंगे। "

आशा भी सामने ही खड़ी थी ,वो उनकी बातें सुनकर काफ़ी खुश होती है। वो समझ नहीं पा रही थी कि इनका शुक्रिया अदा कैसे करेगी। आशा ने यह मान लिया था कि ये उसके ऊपर एक ऐसा कर्ज है जो वो जिंदगी भर में भी चुका नहीं पाएगी। इसके लिए वो जिंदगी भर सुरभि मेम साहब ,अशोक चाचा और विकी की आभारी बनी रहेगी अगर मौका मिला तो इनके एहसान का बदला मर कर भी चुकाएगी।

आजआशा अपने काम पूरी करके वापस आ रही थी तभी विकी ने अपने दोनो हाथों को बांधे हुए दरवाज़े पर खड़ा होकर ,आशा की ओर देखते हुए बोला - " खुश हो न तुम ?"आशा का तो जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा वो मुंडी नीचे करके , होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ के साथ विकी की तरफ देखी और बोली - " हां...। "

वो बेहद खुश थी आज । जिंदगी में पहली बार आज उसे इतनी खुशी हुई थी। वो मुस्कुराते हुए वहां से निकली और घर पहुंचते ही विमला मौसी को गले लगा लिया। आशा विमला मौसी सारी बातें बताई। उसने कहां - " मां तुम मुझे ऐसे ही माना कर रही थी कि मत जाओ वहां काम करने,देखो कितने अच्छे हैं वो लोग। "

विमला मौसी का भी खुशी का ठिकाना नहीं था। दोनों मां - बेटी आज रात सुकून से सो रहीं थीं। आज रात के बाद की सुबह का बेसब्री से इंतज़ार था दोनों मां - बिटिया को......।

अब आगे.....


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