बेरुखी
बेरुखी
तुम्हारी बेरुखियों से ,
रिश्ता कुछ खास हो गया है l
भुला दिया था हमने ,
खुद के लिए जीना ,
ज्जबातों से मेरे ,
तुम बेरुख जो हुए ,
ज़िन्दगी बाकी है अपनी भी जीनी ,
मुझको भी अब ये एहसास हो गया हैl
य़ादों की गालियों मे अब ,
बेरुखियों को ही सजाया है l
परवाह सच न हो ,
शायद तुम्हारी,
बेपरवाही का रिश्ता ,
है दिल से बनाया ,
अंदाज ये तेरा निभाने के रिश्ते ,
मैने भी दिल से आपनाया है l
मतलब के प्यार से ,
बेमतलब की बेरुखी मुझे भा गई है l
दिन को सुकून,
और चैन है रातों को,
इंतेजार.. अब तो ,
न रहता किसी का,
खुद मे ही खुशियां है अपनी समाहित ,
ढूंढने की मुझको कला आ गई है l