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Sulakshana Mishra

Abstract

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Sulakshana Mishra

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आसान नहीं... बड़े बन पाना

आसान नहीं... बड़े बन पाना

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तुम कुछ न कहो

तुम से ही तो 

इस घर का मान है।

ये सुन कर भी हर बार

बहुत कुछ सुन कर भी 

अनसुना कर देना होता है।

देखती हैं आँखें

फरेब के जाल को

पर सब कुछ देख कर भी

अनदेखा कर देना होता है।


बड़ा बन पाना भी, 

कहाँ आसान होता है।

जानते सब हैं हक़ अपने

पर आते बड़े की झोली में

सिर्फ फ़र्ज़ के तमगे ही हैं।

लाख बन जाए वो संबल सभी का

खुद रहना उसे बेसहारा ही है।

इंसान बने रह कर भी

विष पी कर

महादेव बन जाना होता है।


बड़ा बन पाना भी, 

कहाँ आसान होता है।

जान कर भी सब के 

दिल में बसे अंधेरों को

बस छुप के निकल जाना होता है।

लाख झाँके आँसू आँखों से

और फिसल के 

गिर जाने को हों आतुर।

रोती आँखों से भी

नाकाम सा मुस्कुराना होता है।

सबके किरदारों का बौनेपन देख कर भी

खुद के किरदार को बचाना होता है।

बड़ा बन पाना भी,

कहाँ आसान होता है।


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