आरजू-ए-दिल
आरजू-ए-दिल
टूट जाऊँ इस कदर कि,
हर कतरा फिर जुड़ने से कतराए।
लुट जाऊँ इस कदर कि,
ख्वाब भी जेहन में आने से घबराए।
आरजू ना रहे किसी राह-ए-मुकम्मल की,
हर राह में मैं खुदा को पा लूँ।
खुद को आजमाऊं इतना कि,
खुश्बू बन हर साँस में घुल जाऊँ।
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