आओ मिलकर खुशियाँ बाँटें
आओ मिलकर खुशियाँ बाँटें
इस दुनिया में हम अंदर तो देखें।
कितने ग़म हैं कितनी ख़ामियाँ हैं।
गौर से उनके अंदर झाँककर देखें।
उनके अंदर भी कितनी खुशियाँ हैं।
कभी हमने खुशियों के जाल बुनें हैं।
क्यूँ हम खुशियों को आने नहीं देते।
कभी हमने दूसरों के जंजाल सुने हैं।
क्यूँ हम सबके ग़मों को जाने नहीं देते।
उनके त्योहार हम भी कभी मना लें।
कभी उनके रीति रिवाज़ समझें निभाएं।
हम अपने त्योहार पर उनको बुला लें।
कभी अपने संस्कारों को उन्हें समझाएं।
आओ चलो हम सब मिलकर यह करें।
अपनी और सब लोगों की खुशियाँ छाँटें।
ग़मों ख़ामियों में से खुशियाँ अलग करें।
सब चलो, आओ मिलकर खुशियाँ बाँटें।