आंसू
आंसू
आंसू सिमटकर बैठे हैं
खुद को दबाकर बैठे हैं
रात होती है अंधियारी जब
चुपचाप ही वो रो बैठे हैं।
दिल का दर्द जब होता है
वो आंसू से बयां होता है
दिल के दर्द के लिए,
सोलह श्रृंगार कर बैठे हैं।
विरह की ज्वाला को
ये शबनम कर बैठे हैं
कभी मीठा,
कभी खारा होता है
तन्हाई में कड़वा
होकर बैठे है
ये भी गज़ब,
वो ख़ुदा भी गजब है
बिना मौसम ही
बारिश कर बैठे हैं
नफ़रत में ये नहीं
आते हैं ये मिलने
इश्क़ में बिन बुलावे
ही आ बैठे हैं
पत्थरों को भी
मोम कर देते हैं,
सीने को भी छलनी
कर देते हैं
बारूद से ज़्यादा
शोले दे बैठे हैं।
जाम को भी ये,
है ज़ाम देते है
भरी महफ़िल को
तन्हा कर बैठे है
गर ना होते कभी
साखी ये आंसू
ख़ुदा कसम इंसानों
को खो बैठे है।
