Karishma Gupta
Tragedy
इन आँसूओं को पी कर मैंने पहले
न जाने कितनी दफा खुद को समेटा है,
न जाने क्यों ये आज मुझे फिर से बिखेर रहे है।
यात्रा
सफ़र
चक्रवात
वो बस जी रहे ...
**......**
"बदलाव"
बेवजह
संघर्ष
खामोशियां
अंतिम विदा
और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती। और हां कमजोर हूं बहुत इसलिए हर बात पर नहीं रोती।
जब किसी अबला स्त्री को दरिंदे अपनी हवस का शिकार बना रहे होते हैं ? जब किसी अबला स्त्री को दरिंदे अपनी हवस का शिकार बना रहे होते हैं ?
नर से भारी नारी है, फिर भी क्यों दुखों की मारी है? नर से भारी नारी है, फिर भी क्यों दुखों की मारी है?
मै पूछती हूं एक सवाल, क्या बेटियों को नहीं है जीने का अधिकार? मै पूछती हूं एक सवाल, क्या बेटियों को नहीं है जीने का अधिकार?
उनका जाल उनका हाल, अब हमसे बहुत दूर है, उनका जाल उनका हाल, अब हमसे बहुत दूर है,
वक्त रोकना चाहा था... इक बार टोकना चाहा था... वक्त रोकना चाहा था... इक बार टोकना चाहा था...
आज उसकी कोठी बट रही है दौलत के टुकड़े हो रहे आज उसकी कोठी बट रही है दौलत के टुकड़े हो रहे
कल का इंतजार ही हमारा काल है।। कल का इंतजार ही हमारा काल है।।
वह सच हो पाता नहीं कोई उसे मानता नहीं। वह सच हो पाता नहीं कोई उसे मानता नहीं।
होंठ झूठ ही मुस्कुरा देते है जब , आंखो में पानी लगता है. होंठ झूठ ही मुस्कुरा देते है जब , आंखो में पानी लगता है.
सवाल न करिए कि क्या किए जा रहे हैं। सवाल न करिए कि क्या किए जा रहे हैं।
कंपकपाती जब मासूम, तब क्यूँ नहीं आते आगे लोग. कंपकपाती जब मासूम, तब क्यूँ नहीं आते आगे लोग.
विप्र धेनु सुर संत सब आज बहुत हलकान। विप्र धेनु सुर संत सब आज बहुत हलकान।
वंचित ना करना बेटी को, उनके ही अधिकार से। वंचित ना करना बेटी को, उनके ही अधिकार से।
कैसे वह आखिरी ट्रेन फिर लौट आती है तेरे जीवन की पटरी पर। कैसे वह आखिरी ट्रेन फिर लौट आती है तेरे जीवन की पटरी पर।
सबको ज़माने में अपनी-अपनी ही चिंता है सब करते खुद को छोड़ दूसरों की निंदा है. सबको ज़माने में अपनी-अपनी ही चिंता है सब करते खुद को छोड़ दूसरों की निंदा है.
शहर ने आज कितनी तरक्की कर ली रोटियां बंटी, हजारों ने धक्कामुक्की कर ली। शहर ने आज कितनी तरक्की कर ली रोटियां बंटी, हजारों ने धक्कामुक्की कर ली।
आज मन उदास क्यूं है? किसी अजनबी से किसी रिश्ते की आस क्यूं है। आज मन उदास क्यूं है? किसी अजनबी से किसी रिश्ते की आस क्यूं है।
एक गरीब की तरह दर दर मारे मारे इधर उधर दिन रात भटकते भी हैं। एक गरीब की तरह दर दर मारे मारे इधर उधर दिन रात भटकते भी हैं।
अबोध निशानी प्रेम की अब ले साथ सफर पर चलना है। अबोध निशानी प्रेम की अब ले साथ सफर पर चलना है।