"आँखें"
"आँखें"
होश नहीं मुझे साक़िया,
जब से देखी नशीली आँखें,
रुख पे नक़ाब ढ़के ये कटीली आँखें,
ये आँखें नशीली मदहोश किये जाये,
मय छलका के मेरे होश लिये जाये,
रुख से नक़ाब जो हटाऊँ,
मुझे रोक देती है क्यों,
तेरी तीखी नज़र मुझे टोक देती हैं क्यों,
तेरी हया, तेरी शर्म, जानेमन,
मेरे होश लिये जायें,
ये आँखें नशीली मदहोश किये जाये,
मय छलका के मेरे होश लिये जाये,
बात जब मैं करूँ,
खामोश रहती है तू,
अधरों से तो न कही,
वो आँखों से कहती है तू,
आँखों से
मय छलका,
मुझे बेचैन किये जाये,
ये आँखें नशीली मदहोश किये जाये,
मय छलका के मेरे होश लिये जाये,
दीदार को तेरे,
दिल बेचैन रहता है क्यों,
ख्यालों में तेरे,
गुम रहता है क्यों,
ख़्वाबों में मेरे,
हर - पल चली आती हैं क्यों,
दिल के तार छेड़,
बेचैन कर जाती हैं क्यों,
तेरी हया, तेरी शर्म, तेरी कसम,
मेरे होश लिये जाये,
ये आँखें नशीली मदहोश किये जायें,
मय छलका के "शकुन" मेरे होश लिये जाये।।