आँखें
आँखें
न जाने क्यो तेरी
आँखें मुझे बेहाल करती है।
मेरी आँखें कभी तरसती है
कभी बरसती है,
कभी न ए अराम करती हैं।।
न जाने क्यो तेरी
आँखें मुझे बेहाल करती है
कभी सोचो कभी विचारो
मेरे आँखों के मंजर को
समुन्दर से भी गहरी है,
तेरे आँखों का हर मंजर।
न जाने क्यों तेरी
आँखें मुझे बेहाल करती है।
कैसे रोके कैसे टोके
कैसे समझाए समझ कुछ न आता है।
न जाने क्यों तेरी
आँखें मुझे बेहाल करती है।
न जिने देती है न मरने को कहती है
हर पल बस तेरा इन्तजार करती हैं
न जाने क्यो तेरी
आँखें मुझे बेहाल करती है।

