भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
किस पर करे विश्वास धरा पर,
किस पर विश्वास जमाए हम।
है चारो तरफ फैैैली भ्रष्टाचार कि अन्धेरा
कितने सदाचार के दीए जलाए हम।
समाज मे है फैली इस बिमारी को
किस तरह से इलाज कराउं मै ,
चारो तरफ है नफरत की आधी,
यह तेरा यह मेरा है यह उच्च है यह नीच है,
यह अमीर है वह गरीब है मे उलझे है सब ।
धन दौलत के लालच मे सब एक दुसरे के दुश्मन है,
करता हू उद्घोष हे मानव, मानवता को ध्यान धरो।
न कर खुद को कलंकित,
न समाज को कलंकित होने दो।
यह भारत कि भूमि सदा ज्ञान, ध्यान का केन्द्र रहा
इतिहास गवाह है भारत के सम्मान के कारण,
कितने सर धड खंडित मुंडित हुआ ।
आज के अनभिज्ञ हे मानव,
अपने गौरव को जानो तुम।
बीते अतीत के कुछ पहलू को,
जरा सा सोच विचारो तुम।
एक बीज बोेओ तुम सदाचार का,
उसमे अगनित फल उगाओ तुम
कौन कहता है एक से कुछ नही होता,
एक धरा है एक है धरती एक सुर्य जो ताप भरे
एक चन्द्रमा ताप है हरता मानव जग का सब कल्याण करे।
दूसरे को छोडो पहले अपने को देखो,
अपना सदाचार न त्यागो तुम ।
भ्रष्ट आचरण को रोको तुम,
एक सुन्दर समाज का निर्माण करो.
