मैं और मेरी चाहत!
मैं और मेरी चाहत!
मुझ में और मेरी चाहत में काफी फासले हैं।
मानो में जमी हु तो मेरी चाहत आसमां है।।
मैं उषा हूँ तो मेरी चाहत निशा है।
मैं धूप हूं तो वह छांव है।।
इस फासले के बाद भी मुझ में एक आस बाकी है।
मुझ में एक विश्वास बाकी है,
मेरे विश्वास ने मेरे मन को भी अर्पण कर डाला।
तन भी अर्पण कर डाला, नींदों का तर्पण कर डाला ।
मैंने अपनी चाहत को पाने के लिए,
अपना सर्वस्व समर्पण कर डाला।
और मेरे सर्वस्व समर्पण ने एक चमत्कार कर डाला
मेरी सारी चाहत को एक-एक कर पूरा कर डाला।।